भारत की तरह LAC पर मारे गए चीनी जवानों के परिवार वाले भी मांग रहे हैं सम्मान, चीनी सरकार ने यह कहा

15 जून की मध्य रात्रि भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक खूनी झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे लेकिन इसके साथ-साथ चीन के भी करीब 40 सैनिक मारे गए थे। एक तरफ भारत में लोकतंत्र तो दूसरी तरफ चीन में लोकतंत्र जैसा कोई शासन ही नहीं है केवल और केवल तानाशाह का शासन है। भारत माता की भूमि की रक्षा करते हुए अगर कोई भी जवान शहीद होता है तो भारत सरकार और जवान के पार्थिव शरीर को उसके घर भेजती है और राजकीय सम्मान के साथ शहीद हुए जवानों को अंतिम विदाई दी जाती है। इतना ही नहीं भारत सरकार और राज्य सरकार की तरफ से और भी कई सेवाएं और उनके परिवार वालों को नौकरियां भी दी जाती है।
भारत से इतर चीन अपने नागरिकों को यह तक नहीं बता रहा है बलवान घाटी में 15 जून को हुई हिंसक झड़प में कितने चीनी सैनिक मारे गए हैं। भारत में तो सरकार को जनता को जवाब देना ही पड़ता है। यहां तक कि भारत सरकार को जनता का आक्रोश भी सहना पड़ता है क्योंकि भारत का लोकतंत्र कुछ ऐसा ही है कि भारत सरकार जनता से कुछ छिपा नहीं सकती। लेकिन चीन में सिर्फ और सिर्फ तानाशाही चलती है। चीनी सरकार ने अभी तक यह खुलासा नहीं किया है कि एलएसी पर हुई हिंसक खूनी झड़प में चीन के कितने सैनिक मारे गए हैं।
अब चीन की भी जनता भारत की ही तरह चीनी सैनिकों के सम्मान की भी मांग कर रही है। सम्मान तो दूर की बात चीनी सरकार पहले यह तो बता दे कि हिंसक झड़प पर उसकी कितने सैनिक मारे गए हैं। भारत की तरह शहीदों के सम्मान की मांग कर रहे चीनी सैनिकों के परिवारों को शांत करने की कोशिश करते हुए ड्रैगन ने कहा दिया है कि बाद में बताएंगे।
सत्ताधारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के एडिटर हू शिजिन ने एक लेख में लिखा है कि ”अभी तक चीनी सेना ने मारे गए सैनिकों के बारे में कोई सूचना नहीं दी है। मैं समझता हूं कि यह आवश्यक कदम है, जिसका उद्देश्य दो देशों की जनताओं की भावनाओं को नहीं भड़कने देना है।”
चीन का मीडिया भी सत्ताधारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के चले कदम पर ही चलता है। जैसे भारत में मीडिया को आजादी है वैसे आजादी ना तो चीन की मीडिया को है।