होली 2020: एक प्रतीकात्मक परंपरा और आनंदमयी उत्सव का संगम

भारतीय संस्कृति में कई ऐसे त्योहार हैं जिनके पीछे अपनी एक कहानी है, होली का त्योहार अवसर है अपनी समस्त नकारात्मक ऊर्जा को होली की आग में जला कर अगले दिन भांति भांति के रंगों से सकारात्मकता से खुद को रंग देने का। होली का उत्सव फाल्गुन मास की पूर्णिमा को भारत में कई सदियों से मनाया जाता रहा है, यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसके पीछे निरंकुश राक्षस राजा हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रहलाद की कहानी है।
राजा हिरण्यकशप ने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया की वे सभी राजा को देवता स्वरूप मान कर उसकी पूजा करेंगे परंतु राजा का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु की पूजा में लीन रहता था, कई प्रयासों के बाद भी वह अपने पिता की भक्ति करना स्वीकार नहीं करता था। इस बात से अप्रसन्न होकर राजा ने अपने ही पुत्र को मारने का निर्णय लिया और अपनी बहिन होलिका से सहायता लेकर प्रहलाद को अग्नि में जलाकर मारने का निश्चय किया। चूंकि होलिका को एक वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती, वह अपने भतीजे प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी। भगवान विष्णु कि कृपा से प्रहलाद पूरी तरह सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गयी। यही कहानी है अच्छाई की बुराई पर विजय की।
साथ ही होलिका दहन के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है वो यह की लकड़ियों और गोबर के उपलों से बनाई गयी होली को दहन करने से ऋतु परिवर्तन से होने वाले संक्रमण से वातावरण शुद्ध हो जाता है। कुछ लोग इस अग्नि के कोयले को अपने घर में लाकर उसका धूप घर के कोने कोने में देते हैं जिससे घर भी शुद्ध हो जाता है। होलिका दहन प्रतीक है सभी नकारात्मक भावों को नष्ट करके आत्मा को पवित्र करने का। अगले दिन सफ़ेद वस्त्र (पवित्रता का प्रतीक) धारण कर स्वयं और दूसरों को विभिन्न रंगों जो कि सकारात्मक भावों जैसे शांति, खुशहाली, सौहार्द आदि का प्रतीक हैं, से रंगा जाता है।
होली भारत में प्रत्येक आयु वर्ग द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है विशेषकर बच्चे इस त्योहार का बेहद आनंद उठाते हैं। यह दो दिन का त्योहार होता है पहले दिन होलिका दहन और अगले दिन धुलन्डी। होलिका दहन के लिए सूखी लकड़ियों और गोबर के उपलों से होलिका तैयार की जाती है उसकी पूजा की जाती है और शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है और अग्नि की प्रदक्षिणा की जाती है। अगले दिन रंगो से होली खेली जाती है। एक दूसरे को रंग लगाकर, रंग भरे पानी के गुब्बारे और पिचकारियों से जमकर होली का आनंद लिया जाता है और साथ ही गुजिया और ठंडाई के भी मजे लिए जाते हैं। कई स्थानों पर आजकल होली पार्टी का आयोजन किया जाता है जहां धूमधाम से नाच गाना भी किया जाता है।
होली वैसे तो मन को प्रफुल्लित कर देने वाला पर्व है मगर पर्यावरण और स्वयं को इस अति उत्साह भरे माहौल में सुरक्षित रखना भी अनिवार्य है। सावधानी के तौर पर हर्बल और ओरगेनिक रंगों का इस्तेमाल किया जाना सही है।
होली पर होने वाले पानी के प्रयोग को सीमित किया जाना भी अनिवार्य है। अपने ही देश में निर्मित पिचकारियों और रंगों का प्रयोग किया जाना बेहतर विकल्प है। उपर्युक्त छोटी छोटी बातों का ध्यान रखकर हम अपने और अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के साथ साथ होली के इस आनंदमयी उत्सव का भरपूर आनंद उठा सकते हैं।