व्यक्ति विशेष: जानिए रवीश कुमार के मोतिहारी से मैग्सेसे तक का सफ़र.

नमस्कार मैं रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम शो में अपना परिचय देकर आज बिहार के एक छोटे से जिले मोतिहारी के लड़के को एशिया के नोबेल कहे जाने वाले रेमाॅन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया. अपने 23 साल के पत्रकारिता के करियर के बाद रवीश कुमार को यह उपलब्धि हासिल हुई है. इससे पहले वर्ष 2007 में भारतीय पत्रकार पी. साईनाथ को मिला था. करीब 12 साल के अंतराल के बाद किसी पत्रकार को यह खिताब मिला.

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चिट्ठियां छांटकर की थी शुरुआत.
दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (IIMC) से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद , उन्होंने एक टेलीविजन चैनल में अपने करियर की शुरूआत दर्शकों के भेजी चिट्ठियां छांटने से शुरू की थी. फिर चंद वर्षों बाद ‘रवीश की रिपोर्ट’ की शुरुआत की जिसे दर्शकों ने काफ़ी पसंद किया. सामाजिक विषयों आधारित इन रिपोर्ट्स में इनके द्वारा दिखाए गए हिंदुस्तान के असली तस्वीर को काफ़ी सराहा गया.
इनकी किताबों ने लोगों के दिलों में बनाई ख़ास जगह.
पत्रकारिता करते हुए इन्होंने अपनी पहली किताब देखते रहिए साल 2010 में लिखी. इसके बाद यह सिलसिला आगे बढ़ता रहा और दूसरी किताब’ इश्क़ में शहर होना ‘ साल 2015 में प्रकाशित हुई. दो प्रेमी जोड़ियों द्वारा एक नए शहर को देखने और उस शहर को नए सिरे से खोजने और उसमे पलने वाले लघु कथाओं की श्रृंखला के रूप में यह किताब दर्शकों के बीच आयीं. हाल में इनकी इनकी किताब ‘The Free Voice ‘ का हिंदी अनुवाद ‘ बोलना ही है ‘ बाज़ार में उपलब्ध है.

The Free Voice का हाल ही मे हिंदी अनुवाद ‘ बोलना ही है ‘ शीषर्क के रूप में
प्रकाशित की गयी है जो की बाजार में उपलब्ध है
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जान से मारने की धमकीयां भी मिली.
अक्सर अपने बेबाक अंदाज़ से खबरें दिखाने के बाद इन्हें कई बार घोर विरोध का सामना भी करना पड़ा है. पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिले के एक शख्स ने एक सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर अभद्र भाषा का उपयोग करते हुए जान से मारने की धमकी दी. इसी तरह की धमकियों से भरे संदेशों का ज़िक्र इन्होंने अपनी नई किताब में किया है.
इससे पहले भी कई बार सम्मानित हुए हैं.
इससे पहले भी रवीश कुमार को उत्कृष्ट हिंदी पत्रकारिता के लिए सम्मानित किया जा चुका है. वर्ष 2010 में राष्ट्रपति के हाथों गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार , वर्ष 2013 और 2017 में रामनाथ गोयनका अवॉर्ड दिया गया था.साल 2017 में ही रवीश कुमार को कुलदीप नैयर पत्रकारिता भी मिला.

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के हाथों पुरुस्कार लेते हुए.
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खुद का चलाते हैं ब्लॉग.
इन्होंने ‘ नई सड़क ‘ नामक खुद के एक ब्लॉग की स्थापना भी की है. अक्सर अपने विचारों को एक पूरी रिपोर्ट में लिखते रहते है. इसके साथ ही फेसबुक पर सक्रिय रहते है. जहां अपने पाठकों के बीच खबरों के साथ साथ अपनी कविताएं भी साझा करते है.
इनके आलावा चार अन्य लोगों को मिला अवॉर्ड.

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