बिहार में बगावत का खेल जारी, क्या बदल जाएगी पूरी तस्वीर?

बिहार में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बिहार चुनाव को लेकर पार्टियां जोरों शोरों से तैयारियां कर रही हैं। अपने विरोधियों को हराने के लिए नेता भी बयानबाजी से लेकर पार्टियां बदलने तक का काम कर रहे हैं। राजनीति है, राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कुछ ऐसा ही बिहार की राजनीति में भी हुआ है। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही राष्ट्रीय जनता दल को एक के बाद एक दोहरे झटके लगे हैं। राजद के पांच विधान पार्षद यानी विधान परिषद के सदस्यों ने राजद छोड़ जनता दल यूनाइटेड यानी नीतीश कुमार का दामन थाम लिया है। अब विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं का पार्टी छोड़ना पार्टी के लिए हार का कारण भी बन सकता है।
एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल के पांच विधान परिषद सदस्यों ने पार्टी छोड़ी, जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह जो कि कोरोनावायरस से संक्रमित हैं, जिनका अभी इलाज चल रहा है उन्होंने भी राजद के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। राष्ट्रीय जनता दल को एक के बाद एक दो झटके लग चुके हैं।
राजद के 5 विधान परिषद के सदस्यों ने पार्टी छोड़ी है उनमें एमएलसी संजय प्रसाद, कमरे आलम, राधाचरण सेठ, रणविजय सिंह और दिलीप राय के नाम शामिल हैं। सभी पार्षदों ने विधान परिषद के कार्यकारी सभापति को इस संबंध में चिट्ठी सौंप दी है।
बिहार की 9 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव भी होना है। ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल के लिए 5 एमएलसी का पार्टी छोड़ना घातक साबित हो सकता है। इस चुनाव में राजद को जितना लाभ होने वाला था, उससे ज्यादा नुकसान हो गया। उधर, जदयू ने इस चुनाव में होने वाले नुकसान की भरपाई कर ली। जदयू के विधान पार्षदों की संख्या अब 20 पर पहुंच गयी है।
राष्ट्रीय जनता दल में उथल – पुथल मची हुई है। पिता लालू प्रसाद यादव की जगह तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव ही पार्टी की कमान संभाले हुए हैं। जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव ने पार्टी का ध्रुवीकरण किया था ठीक उसी प्रकार बिहार में अब लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव करना चाहते हैं।